संदेश

!! श्री शिवशंकरजी की आरती !! , !! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव !!

चित्र
!! श्री शिवशंकरजी की आरती !! हर हर हर महादेव! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव सबके स्वामी। अविकारी अविनाशी, अज अन्तर्यामी॥ हर हर हर महादेव! आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी। अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर हर महादेव! ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तुम त्रिमूर्तिधारी। कर्ता, भर्ता, धर्ता, तुम ही संहारी॥ हर हर हर महादेव! रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी। साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता अभिमानी॥ हर हर हर महादेव! मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी रागी | सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हर हर हर महादेव! छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल व्याली। चिता भस्मतन त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हर हर हर महादेव! प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीत जटाधारी। विवसन विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी॥ हर हर हर महादेव! शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी। अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मन-हारी॥ हर हर हर महादेव! निर्गुण, सगुण, निरञ्जन, जगमय नित्य प्रभो। कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हर हर हर महादेव! सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता। प्रेम-सुधा-निधि प्रियतम, अखिल विश्व त्राता॥ हर हर हर महादेव! हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै। सब विधि निर्मल मति कर, अपना कर...

!! श्री शिव जी की आरतीयां !! , !! ॐ जय शिव ओंकारा !!

चित्र
!! ॐ जय शिव ओंकारा !! ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ जटा में गंगा बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर ...

!! श्री राम रघुवीर आरती !! , !! ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री राम रघुवीर आरती !! ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन। हरण दुखदुन्द गोविन्द आनन्दघन॥ अचर चर रुप हरि, सर्वगत, सर्वदा बसत, इति बासना धूप दीजै। दीप निजबोधगत कोह-मद-मोह-तम प्रौढ़ अभिमान चित्तवृत्ति छीजै॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम सन्तोषकारी। प्रेम-ताम्बूल गत शूल सन्शय सकल, विपुल भव-बासना-बीजहारी॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ अशुभ-शुभ कर्म घृतपूर्ण दशवर्तिका, त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं। भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली, अर्पि नीराजनं जगनिवासं॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ बिमल हृदि-भवन कृत शान्ति-पर्यंक शुभ, शयन विश्राम श्रीरामराया। क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका, यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ आरती-निरत सनकादि, श्रुति, शेष, शिव, देवरिषि, अखिलमुनि तत्त्व-दरसी। करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल, वदति इति अमलमति दास तुलसी॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥

!! श्री सीताराम आरती !! ,, !! आसपास सखियाँ सुख दैनी !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री सीताराम आरती !! आसपास सखियाँ सुख दैनी, सजि नव साज सिन्गार सुनैनी, बीन सितार लिएँ पिकबैनी, गाइ सुराग सुनाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। अनुपम छबि धरि दन्पति राजत, नील पीत पट भूषन भ्राजत, निरखत अगनित रति छबि लाजत, नैनन को फल पाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। नीरज नैन चपल चितवनमें, रुचिर अरुनिमा सुचि अधरनमें, चन्द्रबदन की मधु मुसकनमें निज नयनाँ अरुझाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। कंचन थार सँवारि मनोहर, घृत कपूर सुभ बाति ज्योतिकर, मुरछल चवँर लिएँ रामेस्वर हरषि सुमन बरसाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ।

!! श्री जानकीनाथ आरती !! , !! जय जानकीनाथा !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री जानकीनाथ आरती !! जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा। दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ तुम रघुनाथ हमारे प्रान, पिता माता। तुम ही सज्जन-सङ्गी भक्ति मुक्ति दाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ लख चौरासी काटो मेटो यम त्रासा। निसिदिन प्रभु मोहि रखिये अपने ही पासा॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ राम भरत लछिमन सँग शत्रुहन भैया। जगमग ज्योति विराजै, शोभा अति लहिया॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ हनुमत नाद बजावत, नेवर झमकाता। स्वर्णथाल कर आरती कौशल्या माता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ सुभग मुकुट सिर, धनु सर कर सोभा भारी। मनीराम दर्शन करि पल-पल बलिहारी॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा। दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥

!! श्री राम रघुपति आरती !! , !! बन्दौं रघुपति करुना निधान !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री राम रघुपति आरती !! बन्दौं रघुपति करुना निधान। जाते छूटै भव-भेद ग्यान॥ रघुबन्स-कुमुद-सुखप्रद निसेस। सेवत पद-पन्कज अज-महेस॥ निज भक्त-हृदय पाथोज-भृन्ग। लावन्यबपुष अगनित अनन्ग॥ अति प्रबल मोह-तम-मारतण्ड। अग्यान-गहन- पावक-प्रचण्ड॥ अभिमान-सिन्धु-कुम्भज उदार। सुररन्जन, भन्जन भूमिभार॥ रागादि- सर्पगन पन्नगारि। कन्दर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥ भव-जलधि-पोत चरनारबिन्द। जानकी-रवन आनन्द कन्द॥ हनुमन्त प्रेम बापी मराल। निष्काम कामधुक गो दयाल॥ त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम। कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥

!! श्री यशोदालाल आरती !! , !! आरति करत यसोदा प्रमुदित !! , !! श्री कृष्ण जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री यशोदालाल आरती !! आरति करत यसोदा प्रमुदित, फूली अङ्ग न मात। बल-बल कहि दुलरावत आनन्द मगन भई पुलकात॥ सुबरन-थार रत्न-दीपावलि चित्रित घृत-भीनी बात। कल सिन्दूर दूब दधि अच्छत तिलक करत बहु भाँत॥ अन्न चतुर्विध बिबिध भोग दुन्दुभि बाजत बहु जात। नाचत गोप कुम्कुमा छिरकत देत अखिल नगदात॥ बरसत कुसुम निकर-सुर-नर- मुनि व्रजजुवती मुसकात। कृष्णदास-प्रभु गिरधर को मुख निरख लजत ससि-काँत॥

!! श्री रघुवर आरती !! , !! आरती कीजै श्री रघुवर जी की !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री रघुवर आरती !! आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की। दशरथ तनय कौशल्या नन्दन, सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन। अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन, मर्यादा पुरुषोतम वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...। निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि, सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि। हरण शोक-भय दायक नव निधि, माया रहित दिव्य नर वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...। जानकी पति सुर अधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक गति। विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति, एक मात्र गति सचराचर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...। शरणागत वत्सल व्रतधारी, भक्त कल्प तरुवर असुरारी। नाम लेत जग पावनकारी, वानर सखा दीन दुख हर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...।

!! आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की !! , !! मथुरा कारागृह अवतारी !! श्री कृष्ण जी की आर्तियां !!

चित्र
!! आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की !! मथुरा कारागृह अवतारी, गोकुल जसुदा गोद विहारी। नन्दलाल नटवर गिरधारी, वासुदेव हलधर भैया की॥ आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की। मोर मुकुट पीताम्बर छाजै, कटि काछनि, कर मुरलि विराजै। पूर्ण सरक ससि मुख लखि लाजै, काम कोटि छवि जितवैया की॥ आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की। गोपीजन रस रास विलासी, कौरव कालिय, कन्स बिनासी। हिमकर भानु, कृसानु प्रकासी, सर्वभूत हिय बसवैया की॥ आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की। कहुँ रन चढ़ै भागि कहुँ जावै, कहुँ नृप कर, कहुँ गाय चरावै। कहुँ जागेस, बेद जस गावै, जग नचाय ब्रज नचवैया की॥ आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की। अगुन सगुन लीला बपु धारी, अनुपम गीता ज्ञान प्रचारी। दामोदर सब विधि बलिहारी, विप्र धेनु सुर रखवैया की॥ आरती श्रीकृष्ण कन्हैया की।

!! भगवान गिरिधारी आरती !! , !! जय जय गिरिधारी प्रभु !! श्री कृष्ण जी की आर्तियां !!

चित्र
!! भगवान गिरिधारी आरती !! जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। दानव-दल-बलहारी, गो-द्विज-हितकारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। जय गोविन्द दयानिधि, गोवर्धन-धारी। वन्शीधर बनवारी ब्रज-जन-प्रियकारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। गणिका-गीध-अजामिल गजपति-भयहारी। आरत-आरति-हारी, जग-मन्गल-कारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। गोपालक, गोपेश्वर, द्रौपदि-दुखदारी। शबर-सुता-सुखकारी, गौतम-तिय तारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। जन-प्रह्लाद-प्रमोदक, नरहरि-तनु-धारी। जन-मन-रञ्जनकारी, दिति-सुत-सन्हारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। टिट्टिभ-सुत-सन्रक्षक रक्षक मन्झारी। पाण्डु-सुवन-शुभकारी कौरव-मद-हारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। मन्मथ मन्मथ मोहन, मुरली-रव-कारी। वृन्दाविपिन-विहारी यमुना-तट-चारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। अघ-बक-बकी उधारक तृणावर्त-तारी। बिधि-सुरपति-मदहारी, कन्स-मुक्तिकारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। शेष, महेश, सरस्वति गुन गावत हारी। कल कीरति-बिस्तारी भक्त-भीति-हारी॥ जय जय गिरिधारी प्रभु, जय जय गिरिधारी। नारायण शरणागत, अति...

!! श्री गोपाल की आरती !! , !! श्री कृष्ण जी की आरतीयां !! , !! आरती जुगल किशोर की कीजै !!

चित्र
!! श्री गोपाल की आरती !! आरती जुगल किशोर की कीजै, राधे धन न्यौछावर कीजै। x2 रवि शशि कोटि बदन की शोभा, ताहि निरखि मेरा मन लोभा। आरती जुगल किशोर की कीजै...। गौर श्याम मुख निरखत रीझै, प्रभु को स्वरुप नयन भर पीजै। कंचन थार कपूर की बाती, हरि आये निर्मल भई छाती। आरती जुगल किशोर की कीजै...। फूलन की सेज फूलन की माला, रतन सिंहासन बैठे नन्दलाला। मोर मुकुट कर मुरली सोहै, नटवर वेष देखि मन मोहै। आरती जुगल किशोर की कीजै...। आधा नील पीत पटसारी, कुञ्ज बिहारी गिरिवरधारी। श्री पुरुषोत्तम गिरवरधारी, आरती करें सकल ब्रजनारी। आरती जुगल किशोर की कीजै...। नन्द लाला वृषभानु किशोरी, परमानन्द स्वामी अविचल जोरी। आरती जुगल किशोर की कीजै, राधे धन न्यौछावर कीजै। आरती जुगल किशोर की कीजै...।

!! श्री बाँकेबिहारी की आरती !! , !! कृष्ण जी की आरतीयां !! , !! श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ !!

चित्र
 !! श्री बाँकेबिहारी की आरती !! श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ। कुन्जबिहारी तेरी आरती गाऊँ। श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे। प्यारी बंशी मेरो मन मोहे। देखि छवि बलिहारी जाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ चरणों से निकली गंगा प्यारी। जिसने सारी दुनिया तारी। मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ दास अनाथ के नाथ आप हो। दुःख सुख जीवन प्यारे साथ हो। हरि चरणों में शीश नवाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ श्री हरि दास के प्यारे तुम हो। मेरे मोहन जीवन धन हो। देखि युगल छवि बलि-बलि जाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ। हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ। श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

!! भगवान नटवर आरती !! , !! नन्द-सुवन जसुमतिके लाला !! , !! श्री कृष्ण जी की आरतीयां !!

चित्र
!! भगवान नटवर आरती !! नन्द-सुवन जसुमतिके लाला, गोधन गोपी प्रिय गोपाला। देवप्रिय असुरनके काला, मोहन विश्वविमोहन वर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की। गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ जय वसुदेव-देवकी-नन्दन, कालयवन-कन्सादि-निकन्दन। जगदाधार अजय जगवन्दन, नित्य नवीन परम सुन्दर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की। गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ अकल कलाधर सकल विश्वधर, विश्वम्भर कामद करुणाकर। अजर, अमर, मायिक, मायाहर, निर्गुन चिन्मय गुणमन्दिर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की। गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ पाण्डव-पूत परीक्षित रक्षक, अतुलित अहि अघ मूषक-भक्षक। जगमय जगत निरीह निरीक्षक, ब्रह्म परात्पर परमेश्वर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की। गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ नित्य सत्य गोलोकविहारी, अजाव्यक्त लीलावपुधारी। लीलामय लीलाविस्तारी, मधुर मनोहर राधावर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की। गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की, गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की, गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥ आरती कीजै श्रीनटवर जी की। गोवर्धन-धर बन्शीधर की॥

!! आरती कुंजबिहारी की !! , !! श्री कृष्ण जी की आरतीयां !!

चित्र
!! आरती कुंजबिहारी की !! आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की। गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चन्द्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं। गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥ x2 चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू। चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी...

!!! जयति मंगलागार, संसार !! , !! श्री पवनसुत हनुमान आरती !! , !! हनुमान जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री पवनसुत हनुमान आरती !! जयति मंगलागार, संसार, भारापहर, वानराकार विग्रह पुरारी। राम-रोषानल, ज्वालमाला मिषध्वान्तचर-सलभ-संहारकारी॥ जयति मरुदन्जनामोद-मन्दिर, नतग्रीवसुग्रीव-दुःखैकबन्धो। यातुधानोद्धत-क्रुद्ध-कालाग्निहर, सिद्ध-सुर-सज्जनानन्दसिन्धो॥ जयति रुद्राग्रणी, विश्ववन्द्याग्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती। सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित, रामभक्तानुवर्ती॥ जयति संग्रामजय, रामसन्देशहर, कौशला-कुशल-कल्याणभाषी। राम-विरहार्क-संतप्त-भरतादि नर-नारि-शीतलकरणकल्पशाषी॥ जयति सिंहासनासीन सीतारमण, निरखि निर्भर हरष नृत्यकारी। राम संभ्राज शोभा-सहित सर्वदा तुलसि-मानस-रामपुर-विहारी॥

!! ॐ जय हनुमत वीरा !! , !! श्री हनुमान जी की आरतीयां !! , !! श्री बालाजी आरती !!

चित्र
!! श्री बालाजी आरती !! ॐ जय हनुमत वीरा स्वामी जय हनुमत वीरा। संकट मोचन स्वामी तुम हो रणधीरा॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ पवन-पुत्र-अंजनी-सुत महिमा अति भारी। दुःख दरिद्र मिटाओ संकट सब हारी॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ बाल समय में तुमने रवि को भक्ष लियो। देवन स्तुति कीन्ही तब ही छोड़ दियो॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई। बाली बली मराय कपीसहिं गद्दी दिलवाई॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ जारि लंक को ले सिय की सुधि वानर हर्षाये। कारज कठिन सुधारे रघुवर मन भाये॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ शक्ति लगी लक्ष्मण के भारी सोच भयो। लाय संजीवन बूटी दुःख सब दूर कियो॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ ले पाताल अहिरावण जबहि पैठि गयो। ताहि मारि प्रभु लाये जय जयकार भयो॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ घाटे मेहंदीपुर में शोभित दर्शन अति भारी। मंगल और शनिश्चर मेला है जारी॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥ श्री बालाजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत इन्द्र हर्षित मन वांछित फल पावे॥ ॐ जय हनुमत वीरा...॥

!! आरती कीजै हनुमान लला की !! , !! हनुमान जी की आरतीयां !!

चित्र
!! आरती कीजै हनुमान लला की !! आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥ दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥ लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥ लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥ लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥ पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥ बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥ सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥ कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥ जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥

!! गणपति की सेवा मंगल मेवा !! , !! गणेश जी की आरतीयां !!

चित्र
!!  गणपति की सेवा मंगल मेवा  !! गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरैं। तीन लोक के सकल देवता, द्वार खड़े नित अर्ज करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ रिद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजें, अरु आनन्द सों चमर करैं। धूप-दीप अरू लिए आरती भक्त खड़े जयकार करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ गुड़ के मोदक भोग लगत हैं मूषक वाहन चढ्या सरैं। सौम्य रूप को देख गणपति के विघ्न भाग जा दूर परैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ भादो मास अरु शुक्ल चतुर्थी दिन दोपारा दूर परैं। लियो जन्म गणपति प्रभु जी दुर्गा मन आनन्द भरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का देव बंधु सब गान करैं। श्री शंकर के आनन्द उपज्या नाम सुन्यो सब विघ्न टरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ आनि विधाता बैठे आसन, इन्द्र अप्सरा नृत्य करैं। देख वेद ब्रह्मा जी जाको विघ्न विनाशक नाम धरैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ एकदन्त गजवदन विनायक त्रिनयन रूप अनूप धरैं। पगथंभा सा उदर पुष्ट है देव चन्द्रमा हास्य करैं॥ गणपति की सेवा मंगल मेवा...॥ दे शराप श्री चन्द्रदेव को कलाहीन तत्काल करैं। चौदह लोक में फिरें गणपति तीन लोक में राज्य क...

!! आरती गजबदन विनायक की !! , !! गणेश जी की आरतीयां

चित्र
!! आरती गजबदन विनायक की !! आरती गजबदन विनायक की। सुर-मुनि-पूजित गणनायक की॥ आरती गजबदन विनायक की। सुर-मुनि-पूजित गणनायक की || एकदन्त शशिभाल गजानन, विघ्नविनाशक शुभगुण कानन। शिवसुत वन्द्यमान-चतुरानन, दुःखविनाशक सुखदायक की॥ आरती गजबदन विनायक की॥ ऋद्धि-सिद्धि-स्वामी समर्थ अति, विमल बुद्धि दाता सुविमल-मति। अघ-वन-दहन अमल अबिगत गति, विद्या-विनय-विभव-दायककी॥ आरती गजबदन विनायक की॥ पिङ्गलनयन, विशाल शुण्डधर, धूम्रवर्ण शुचि वज्रांकुश-कर। लम्बोदर बाधा-विपत्ति-हर, सुर-वन्दित सब विधि लायक की॥ आरती गजबदन विनायक की॥

!! श्रीनृसिंहाष्टकम् !!

चित्र
!!  श्री नृसिंहाष्टकम्  !! सुन्दरजामातृमुनेः प्रपद्ये चरणाम्बुजम्। संसारार्णवसंमग्नजन्तुसंतारपोतकम्॥ श्रीमदकलङ्क परिपूर्ण! शशिकोटि- श्रीधर! मनोहर! सटापटल कान्त!। पालय कृपालय! भवाम्बुधि-निमग्नं दैत्यवरकाल! नरसिंह! नरसिंह!॥1॥ पादकमलावनत पातकि-जनानां पातकदवानल! पतत्रिवर-केतो!। भावन! परायण! भवार्तिहरया मां पाहि कृपयैव नरसिंह! नरसिंह!॥2॥ तुङ्गनख-पङ्क्ति-दलितासुर-वरासृक् पङ्क-नवकुङ्कुम-विपङ्किल-महोरः। पण्डितनिधान-कमलालय नमस्ते पङ्कजनिषण्ण! नरसिंह! नरसिंह!॥3॥ मौलेषु विभूषणमिवामर वराणां योगिहृदयेषु च शिरस्सु निगमानाम्। राजदरविन्द-रुचिरं पदयुगं ते देहि मम मूर्ध्नि नरसिंह! नरसिंह!॥4॥ वारिजविलोचन! मदन्तिम-दशायां क्लेश-विवशीकृत-समस्त-करणायाम्। एहि रमया सह शरण्य! विहगानां नाथमधिरुह्य नरसिंह! नरसिंह!॥5॥ हाटक-किरीट-वरहार-वनमाला धाररशना-मकरकुण्डल-मणीन्द्रैः। भूषितमशेष-निलयं तव वपुर्मे चेतसि चकास्तु नरसिंह! नरसिंह!॥6॥ इन्दु रवि पावक विलोचन! रमायाः मन्दिर! महाभुज!-लसद्वर-रथाङ्ग!। सुन्दर! चिराय रमतां त्वयि मनो मे नन्दित सुरेश! नरसिंह! नरसिंह!॥7॥ माधव! मुकुन्द! मधुसूदन! मुरारे! वामन! नृसिंह! शरणं...