!! श्रीनृसिंहाष्टकम् !!



!! श्री नृसिंहाष्टकम् !!










सुन्दरजामातृमुनेः प्रपद्ये चरणाम्बुजम्।

संसारार्णवसंमग्नजन्तुसंतारपोतकम्॥



श्रीमदकलङ्क परिपूर्ण! शशिकोटि-

श्रीधर! मनोहर! सटापटल कान्त!।

पालय कृपालय! भवाम्बुधि-निमग्नं

दैत्यवरकाल! नरसिंह! नरसिंह!॥1॥




पादकमलावनत पातकि-जनानां

पातकदवानल! पतत्रिवर-केतो!।

भावन! परायण! भवार्तिहरया मां

पाहि कृपयैव नरसिंह! नरसिंह!॥2॥


तुङ्गनख-पङ्क्ति-दलितासुर-वरासृक्

पङ्क-नवकुङ्कुम-विपङ्किल-महोरः।

पण्डितनिधान-कमलालय नमस्ते

पङ्कजनिषण्ण! नरसिंह! नरसिंह!॥3॥


मौलेषु विभूषणमिवामर वराणां

योगिहृदयेषु च शिरस्सु निगमानाम्।

राजदरविन्द-रुचिरं पदयुगं ते

देहि मम मूर्ध्नि नरसिंह! नरसिंह!॥4॥


वारिजविलोचन! मदन्तिम-दशायां

क्लेश-विवशीकृत-समस्त-करणायाम्।

एहि रमया सह शरण्य! विहगानां

नाथमधिरुह्य नरसिंह! नरसिंह!॥5॥


हाटक-किरीट-वरहार-वनमाला

धाररशना-मकरकुण्डल-मणीन्द्रैः।

भूषितमशेष-निलयं तव वपुर्मे

चेतसि चकास्तु नरसिंह! नरसिंह!॥6॥


इन्दु रवि पावक विलोचन! रमायाः

मन्दिर! महाभुज!-लसद्वर-रथाङ्ग!।

सुन्दर! चिराय रमतां त्वयि मनो मे

नन्दित सुरेश! नरसिंह! नरसिंह!॥7॥


माधव! मुकुन्द! मधुसूदन! मुरारे!

वामन! नृसिंह! शरणं भव नतानाम्।

कामद घृणिन् निखिलकारण नयेयं

कालममरेश नरसिंह! नरसिंह!॥8॥


अष्टकमिदं सकल-पातक-भयघ्नं

कामदं अशेष-दुरितामय-रिपुघ्नम्।

यः पठति सन्ततमशेष-निलयं ते

गच्छति पदं स नरसिंह! नरसिंह!॥9॥


॥ इति श्रीनृसिंहाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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