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!! श्री राम रघुवीर आरती !! , !! ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन !! श्री राम जी की आरतीयां !!

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!! श्री राम रघुवीर आरती !! ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन। हरण दुखदुन्द गोविन्द आनन्दघन॥ अचर चर रुप हरि, सर्वगत, सर्वदा बसत, इति बासना धूप दीजै। दीप निजबोधगत कोह-मद-मोह-तम प्रौढ़ अभिमान चित्तवृत्ति छीजै॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम सन्तोषकारी। प्रेम-ताम्बूल गत शूल सन्शय सकल, विपुल भव-बासना-बीजहारी॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ अशुभ-शुभ कर्म घृतपूर्ण दशवर्तिका, त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं। भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली, अर्पि नीराजनं जगनिवासं॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ बिमल हृदि-भवन कृत शान्ति-पर्यंक शुभ, शयन विश्राम श्रीरामराया। क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका, यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ आरती-निरत सनकादि, श्रुति, शेष, शिव, देवरिषि, अखिलमुनि तत्त्व-दरसी। करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल, वदति इति अमलमति दास तुलसी॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥

!! श्री सीताराम आरती !! ,, !! आसपास सखियाँ सुख दैनी !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

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!! श्री सीताराम आरती !! आसपास सखियाँ सुख दैनी, सजि नव साज सिन्गार सुनैनी, बीन सितार लिएँ पिकबैनी, गाइ सुराग सुनाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। अनुपम छबि धरि दन्पति राजत, नील पीत पट भूषन भ्राजत, निरखत अगनित रति छबि लाजत, नैनन को फल पाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। नीरज नैन चपल चितवनमें, रुचिर अरुनिमा सुचि अधरनमें, चन्द्रबदन की मधु मुसकनमें निज नयनाँ अरुझाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। कंचन थार सँवारि मनोहर, घृत कपूर सुभ बाति ज्योतिकर, मुरछल चवँर लिएँ रामेस्वर हरषि सुमन बरसाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ।

!! श्री जानकीनाथ आरती !! , !! जय जानकीनाथा !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

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!! श्री जानकीनाथ आरती !! जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा। दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ तुम रघुनाथ हमारे प्रान, पिता माता। तुम ही सज्जन-सङ्गी भक्ति मुक्ति दाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ लख चौरासी काटो मेटो यम त्रासा। निसिदिन प्रभु मोहि रखिये अपने ही पासा॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ राम भरत लछिमन सँग शत्रुहन भैया। जगमग ज्योति विराजै, शोभा अति लहिया॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ हनुमत नाद बजावत, नेवर झमकाता। स्वर्णथाल कर आरती कौशल्या माता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ सुभग मुकुट सिर, धनु सर कर सोभा भारी। मनीराम दर्शन करि पल-पल बलिहारी॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा। दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥

!! श्री राम रघुपति आरती !! , !! बन्दौं रघुपति करुना निधान !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

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!! श्री राम रघुपति आरती !! बन्दौं रघुपति करुना निधान। जाते छूटै भव-भेद ग्यान॥ रघुबन्स-कुमुद-सुखप्रद निसेस। सेवत पद-पन्कज अज-महेस॥ निज भक्त-हृदय पाथोज-भृन्ग। लावन्यबपुष अगनित अनन्ग॥ अति प्रबल मोह-तम-मारतण्ड। अग्यान-गहन- पावक-प्रचण्ड॥ अभिमान-सिन्धु-कुम्भज उदार। सुररन्जन, भन्जन भूमिभार॥ रागादि- सर्पगन पन्नगारि। कन्दर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥ भव-जलधि-पोत चरनारबिन्द। जानकी-रवन आनन्द कन्द॥ हनुमन्त प्रेम बापी मराल। निष्काम कामधुक गो दयाल॥ त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम। कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥

!! श्री रघुवर आरती !! , !! आरती कीजै श्री रघुवर जी की !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

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!! श्री रघुवर आरती !! आरती कीजै श्री रघुवर जी की, सत् चित् आनन्द शिव सुन्दर की। दशरथ तनय कौशल्या नन्दन, सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन। अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन, मर्यादा पुरुषोतम वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...। निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि, सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि। हरण शोक-भय दायक नव निधि, माया रहित दिव्य नर वर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...। जानकी पति सुर अधिपति जगपति, अखिल लोक पालक त्रिलोक गति। विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति, एक मात्र गति सचराचर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...। शरणागत वत्सल व्रतधारी, भक्त कल्प तरुवर असुरारी। नाम लेत जग पावनकारी, वानर सखा दीन दुख हर की। आरती कीजै श्री रघुवर जी की...।