संदेश

!! श्री शिवशंकरजी की आरती !! , !! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव !!

चित्र
!! श्री शिवशंकरजी की आरती !! हर हर हर महादेव! सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव सबके स्वामी। अविकारी अविनाशी, अज अन्तर्यामी॥ हर हर हर महादेव! आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी। अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥ हर हर हर महादेव! ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तुम त्रिमूर्तिधारी। कर्ता, भर्ता, धर्ता, तुम ही संहारी॥ हर हर हर महादेव! रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी। साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता अभिमानी॥ हर हर हर महादेव! मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी रागी | सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥ हर हर हर महादेव! छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल व्याली। चिता भस्मतन त्रिनयन, अयनमहाकाली॥ हर हर हर महादेव! प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीत जटाधारी। विवसन विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी॥ हर हर हर महादेव! शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी। अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मन-हारी॥ हर हर हर महादेव! निर्गुण, सगुण, निरञ्जन, जगमय नित्य प्रभो। कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥ हर हर हर महादेव! सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता। प्रेम-सुधा-निधि प्रियतम, अखिल विश्व त्राता॥ हर हर हर महादेव! हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै। सब विधि निर्मल मति कर, अपना कर...

!! श्री शिव जी की आरतीयां !! , !! ॐ जय शिव ओंकारा !!

चित्र
!! ॐ जय शिव ओंकारा !! ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ जटा में गंगा बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥ त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर ...

!! श्री राम रघुवीर आरती !! , !! ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री राम रघुवीर आरती !! ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन। हरण दुखदुन्द गोविन्द आनन्दघन॥ अचर चर रुप हरि, सर्वगत, सर्वदा बसत, इति बासना धूप दीजै। दीप निजबोधगत कोह-मद-मोह-तम प्रौढ़ अभिमान चित्तवृत्ति छीजै॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ भाव अतिशय विशद प्रवर नैवेद्य शुभ श्रीरमण परम सन्तोषकारी। प्रेम-ताम्बूल गत शूल सन्शय सकल, विपुल भव-बासना-बीजहारी॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ अशुभ-शुभ कर्म घृतपूर्ण दशवर्तिका, त्याग पावक, सतोगुण प्रकासं। भक्ति-वैराग्य-विज्ञान दीपावली, अर्पि नीराजनं जगनिवासं॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ बिमल हृदि-भवन कृत शान्ति-पर्यंक शुभ, शयन विश्राम श्रीरामराया। क्षमा-करुणा प्रमुख तत्र परिचारिका, यत्र हरि तत्र नहिं भेद-माया॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥ आरती-निरत सनकादि, श्रुति, शेष, शिव, देवरिषि, अखिलमुनि तत्त्व-दरसी। करै सोइ तरै, परिहरै कामादि मल, वदति इति अमलमति दास तुलसी॥ ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन॥

!! श्री सीताराम आरती !! ,, !! आसपास सखियाँ सुख दैनी !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री सीताराम आरती !! आसपास सखियाँ सुख दैनी, सजि नव साज सिन्गार सुनैनी, बीन सितार लिएँ पिकबैनी, गाइ सुराग सुनाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। अनुपम छबि धरि दन्पति राजत, नील पीत पट भूषन भ्राजत, निरखत अगनित रति छबि लाजत, नैनन को फल पाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। नीरज नैन चपल चितवनमें, रुचिर अरुनिमा सुचि अधरनमें, चन्द्रबदन की मधु मुसकनमें निज नयनाँ अरुझाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ। कंचन थार सँवारि मनोहर, घृत कपूर सुभ बाति ज्योतिकर, मुरछल चवँर लिएँ रामेस्वर हरषि सुमन बरसाओ॥ गाओ गाओ री, प्रियाप्रीतम की आरती गाओ।

!! श्री जानकीनाथ आरती !! , !! जय जानकीनाथा !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री जानकीनाथ आरती !! जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा। दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ तुम रघुनाथ हमारे प्रान, पिता माता। तुम ही सज्जन-सङ्गी भक्ति मुक्ति दाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ लख चौरासी काटो मेटो यम त्रासा। निसिदिन प्रभु मोहि रखिये अपने ही पासा॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ राम भरत लछिमन सँग शत्रुहन भैया। जगमग ज्योति विराजै, शोभा अति लहिया॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ हनुमत नाद बजावत, नेवर झमकाता। स्वर्णथाल कर आरती कौशल्या माता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ सुभग मुकुट सिर, धनु सर कर सोभा भारी। मनीराम दर्शन करि पल-पल बलिहारी॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा। दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनिये बाता॥ जय जानकीनाथा, जय श्रीरघुनाथा॥

!! श्री राम रघुपति आरती !! , !! बन्दौं रघुपति करुना निधान !! , !! श्री राम जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री राम रघुपति आरती !! बन्दौं रघुपति करुना निधान। जाते छूटै भव-भेद ग्यान॥ रघुबन्स-कुमुद-सुखप्रद निसेस। सेवत पद-पन्कज अज-महेस॥ निज भक्त-हृदय पाथोज-भृन्ग। लावन्यबपुष अगनित अनन्ग॥ अति प्रबल मोह-तम-मारतण्ड। अग्यान-गहन- पावक-प्रचण्ड॥ अभिमान-सिन्धु-कुम्भज उदार। सुररन्जन, भन्जन भूमिभार॥ रागादि- सर्पगन पन्नगारि। कन्दर्प-नाग-मृगपति, मुरारि॥ भव-जलधि-पोत चरनारबिन्द। जानकी-रवन आनन्द कन्द॥ हनुमन्त प्रेम बापी मराल। निष्काम कामधुक गो दयाल॥ त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम। कह तुलसिदास बिश्राम-धाम॥

!! श्री यशोदालाल आरती !! , !! आरति करत यसोदा प्रमुदित !! , !! श्री कृष्ण जी की आरतीयां !!

चित्र
!! श्री यशोदालाल आरती !! आरति करत यसोदा प्रमुदित, फूली अङ्ग न मात। बल-बल कहि दुलरावत आनन्द मगन भई पुलकात॥ सुबरन-थार रत्न-दीपावलि चित्रित घृत-भीनी बात। कल सिन्दूर दूब दधि अच्छत तिलक करत बहु भाँत॥ अन्न चतुर्विध बिबिध भोग दुन्दुभि बाजत बहु जात। नाचत गोप कुम्कुमा छिरकत देत अखिल नगदात॥ बरसत कुसुम निकर-सुर-नर- मुनि व्रजजुवती मुसकात। कृष्णदास-प्रभु गिरधर को मुख निरख लजत ससि-काँत॥