!! श्री यमुनाष्टकम् !!



!! श्री यमुनाष्टकम् !!










मुरारिकायकालिमाललामवारिधारिणी

तृणीकृतत्रिविष्टपा त्रिलोकशोकहारिणी।

मनोऽनुकूलकूलकुञ्जपुञ्जधूतदुर्मदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥1॥


मलापहारिवारिपूरभूरिमण्डितामृता

भृशं प्रपातकप्रवञ्चनातिपण्डितानिशम्।

सुनन्दनन्दनाङ्ग-सङ्गरागरञ्जिता हिता

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥2॥


लसत्तरङ्गसङ्गधूतभूतजातपातका

नवीनमाधुरीधुरीणभक्तिजातचातका।

तटान्तवासदासहंससंसृता हि कामदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥3॥


विहाररासखेदभेदधीरतीरमारुता

गता गिरामगोचरे यदीयनीरचारुता।

प्रवाहसाहचर्यपूतमेदिनीनदीनदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥4॥


तरङ्गसङ्गसैकताञ्चितान्तरा सदासिता

शरन्निशाकरांशुमञ्जुमञ्जरीसभाजिता।

भवार्चनाय चारुणाम्बुनाधुना विशारदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥5॥


जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी

स्वभर्तुरन्यदुर्लभाङ्गसङ्गतांशभागिनी।

स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदनातिकोविदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥6॥


जलच्युताच्युताङ्गरागलम्पटालिशालिनी

विलोलराधिकाकचान्तचम्पकालिमालिनी।

सदावगाहनावतीर्णभर्तृभृत्यनारदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥7॥


सदैव नन्दनन्दकेलिशालिकुञ्जमञ्जुला

तटोत्थफुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसूज्ज्वला।

जलावगाहिनां नृणां भवाब्धिसिन्धुपारदा

धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा॥8॥


॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीयमुनाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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